मोदी जी आदाब! काफी रोज तक सोच-विचार करने के बाद आप को एक खुला खत लिखने बैठा हूं. हो तो ये भी सकता था कि इसको निजी तौर पर लिखकर पीएम ऑफिस को पोस्ट कर देता. लेकिन आजकल आप मीडिया के जरिये ही संवाद कर रहे हैं तो यही तरीका सही लगा. नीयत ये भी है कि इंडिया की जनता भी वे बातें जाने जो मीडिया अक्सर उनको बताता नहीं.
आपको दिवाली की शुभकामनाएं देते हुए इस बात की उम्मीद करता हूं कि आप मेरे इस खत का नोटिस जरूर लेंगे.
मोदी जी, आज करीब चार महीने हो गए, कश्मीर बंद है. सड़क, चौराहे, खेल के मैदान, स्कूल, झीलें, पहाड़, बाग, रेलवे ट्रैक और एयरपोर्ट सब वीरान पड़े हैं. अगर कहीं भीड़ है तो अस्पतालों में और उन चौकों परे जहां पुलिस, सीआरपीएफ, सेना और आम कश्मीरी लड़के आमने-सामने हैं. पत्थर, पैलेट, खून, चेहरों के नकाब, मातम, कब्रें, जनाजे यहां पर प्रोटेस्ट के सबसे मजबूत प्रतीक बन चुके हैं. कश्मीर अफेयर्स देखने वाले आपके करीबी राजदार और एजेंसियों वाले आप को रोजाना रिपोर्ट देते ही होंगे. उन रिपोर्ट्स में यही लिखा रहता होगा कि आज कितने मिलिटेंट मारे गए, कितनी पुलिस चौकियां जलीं, कितने कश्मीरी लड़के मरे, कितने अंधे या जख्मी हुए. आप एक नजर फाइल पर डालकर उसे आगे बढ़ा देते होंगे. शायद दुखी होते होंगे (या नहीं भी) और फिर दुबारा किसी काम में जुट जाते होंगे.
मोदी जी, ये सिर्फ आंकड़े हैं जो हर साल घटते-बढ़ते रहते हैं. कभी बीस दिन कर्फ्यू, कभी तीन महीने, कभी 100 जवान मरते हैं कभी 120. ये आंकड़े हर नये मौसम में बस बदलते रहते हैं. डेलिगेशन आते हैं, कमीशन बैठते हैं, ट्रैक-टू डिप्लोमेसी के ठेकेदार गुश्ताबे और वाजवान डकार के वापस दिल्ली उड़ जाते हैं. नेशनल और इंटरनेशनल मीडिया की ओवी वैन्स भी दिल्ली लौट जाती हैं. कश्मीर वहीं रह जाता है अपनी टीसों, चोटों और जख्मों के साथ. मीडिया वह सब बता देता है जो उन्हें पीएमओ की पीआर एजेंसी ने फीड किया होता है. इसी ढर्रे पर कुछ साल-महीने गुजरते हैं. हालात फिर वैसे के वैसे. जब तक कोई नई चिंगारी भड़क के शोला नहीं बन जाती.
मोदी जी, आपको मालूम है इस बार जो लड़के सड़कों पर हाथ में पत्थर संभाले उतरे हैं, उनकी औसत उम्र क्या है? पंद्रह से बीस साल. यानी ये वो लड़के हैं जिन्होंने कश्मीर के स्ट्रगल का वह रूप देखा ही नहीं जिससे उनके मां-बाप, बड़े-बुज़ुर्ग गुजर चुके हैं. इन्होंने बस सुना भर है कि इनके डैडी, अंकल या भाई एनकाउंटर में मारे गए थे या उनको किसी रात आर्मी उठा ले गई थी और वे कभी वापस नहीं लौटे. या फिर इंडिया के साथ जिहाद करते हुए शहीद हो गए थे.
मोदी जी, हर बात अजीत डोवाल नहीं बताते, बहुत कुछ इलाके के एसएचओ और मस्जिद के इमाम से भी जाना जा सकता है. हाथों में पत्थर उठाए, कैमरे से अपने नकाब पहने चेहरे को बचाता हुआ वह लड़का जिसे इंडिया से नफरत है, उसे गिलानी और पाकिस्तान से भी शिकायतें हैं. वह अच्छे से जानता है कि इन तीनों ताकतों ने मिलकर उसका और उसके परिवार का वक्त जाया किया है. ये तो माओं के पाले-पोसे, जीन्स पहनने वाले स्मार्ट लड़के हैं जिनके रोल-मॉडल सलमान खान, परवेज रसूल, आईएस टॉपर शाह फैसल और शाहरुख खान हैं. ये लोग अरिजीत, राहत फतेह अली और हनी सिंह के गाने सुनकर जवान हुए हैं.
मोदीे जी, आज इन लड़कों का रोल मॉडल बुरहान वानी इसलिए है क्योंकि ये जाने-अनजाने एक ऐसे मसीहा की तलाश में हैं जो इनके भविष्य को सुरक्षित करने में इनकी मदद करे. सो अबकी इन्हें इक्कीस साल के एक इंजीनियर लड़के में वह हीरो मिल गया जिसके हाथ में आईफोन की जगह चमचमाती एके-47 थी. जिसके मुजाहिद भाई को कुछ साल पहले इंडियन आर्मी ने मारा था, जो बेखौफ होकर अपने वीडियो यू-ट्यूब पर अपलोड करता था, जिसको धोखे से मारा गया. इन्हीं में दूसरा तबका वो है जो पढ़ नहीं पाया. बेरोजगार रह गया. सूमो, ऑटो, शिकारा चलाता है. संडे मार्केट में डल के किनारे सैलानियों को फिरन बेचता है.
ये वह तबका है, जो गिलानी के कैलेंडर को भी नहीं मानता. यासीन मालिक, शब्बीर शाह और उमर फारूक को (उनकी मर्जी से ही) नजरबंद रहने पे मजबूर करता है. ना किसी की सुनता है ना किसी की मानता है. इसका ना कोई लीडर है, ना इसका कोई चेहरा है. इसकी दुनिया उतनी है जितनी एंड्रॉयड मोबाइल की स्क्रीन में समाती है.
मोदी जी, इस कश्मीर के ताजा प्रोटेस्ट में शामिल हुए इन नौसेखिए जवानों के साथ कभी बात कीजिए तो ये सवालों के अजीबोगरीब आधे-अधूरे जवाब देते हैं.
मुझे इंडिया के साथ नहीं रहना.
पाकिस्तान चोर है.
पाकिस्तान जिंदाबाद.
गिलानी ने हमारा सौदा किया है.
गिलानी जिंदाबाद.
बुरहान वानी का खून जाया नहीं जाएगा.
महबूबा, उमर, आजाद ये सब दिल्ली के पिट्ठू हैं.
मोदी मुसलमानों का दुश्मन है. इसे सबक सिखाना जरूरी है.
हम छीनके लेंगे आजादी.
बस अब बहुत हो गया...अबकी बार आर या पार.
मोदी जी, इन दंगाई लड़कों का ना कोई चेहरा है, ना लीडर, ना कोई आॅफिस ना कोई स्टेज. इनमें गुस्सा है, घुटन है, प्रोटेस्ट है, जनून है. अपनों के खिलाफ, गैरों के खिलाफ, इंडिया के खिलाफ, पाकिस्तान के खिलाफ, हुर्रियत के खिलाफ. ये आइडेंटिटी क्राइसिस की मारी हुई वो नस्ल है जो कुछ महीने जेहनी तौर पर इंडिया के साथ ग्रो करती है. आईएस टॉपर शाह फैसल और क्रिकेटर परवेज रसूल को रोल मॉडल मान लेती है. दूसरे महीने पाकिस्तान से उम्मीद वाबस्ता कर लेती है. एक दिन खुदमुख्तारी का ख्वाब देखकर आजादी के गीत गाती है. दूसरे दिन बुरहान वानी की तरह बंदूक उठाकर बॉर्डर पार जाने को आमादा हो जाती है. इसको कुछ नहीं सूझता. ये इंडिया में सलमान, शाहरुख, जावेद अख्तर, आमिर खान को मिल रही मोहब्बत से खुश भी होती है तो यह भी चाहती है कि विराट कोहली को शोएब अख्तर बार-बार क्लीन बोल्ड करे. इनके मन में सचिन और अमिताभ के लिए इज्जत भी है, लेकिन इसे नुसरत और राहत की कव्वाली भी सुननी है. नए यूथ का ये रिप्रजेंटेटिव इंडियन है पर इंडियन नहीं, पाकिस्तानी है पर पाकिस्तानी नहीं, कश्मीरी है पर कश्मीरी भी नहीं...
ये पाकिस्तान जिंदाबाद का नारा तो लगा सकता है, लेकिन भारत माता की जय जैसी कोई चीज इसके जेहन में नहीं है. इन सबके पास रिलायंस के जिओ का फोर-जी सिम भी है, और स्कूल की बिल्डिंग के लिए सड़क किनारे से उठाया नुकीला पत्थर भी. जिनके हाथ में पत्थर नहीं है उनके दिल में पत्थर है. आर्मी की भर्ती की दौड़ में पीछे रहने वाला, आर्मी की गाड़ी पर पत्थर फेंकने वालों में सबसे आगे है.
ये लड़के आर्मी की चौकी को घेरकर उसपर पेट्रोल बम भी फेंकते हैं, लेकिन कहीं आर्मी की गाड़ी पलट जाए तो उसमें फंसे जवानों को निकालने के लिए भी पिल पड़ते हैं. ब्लड बैंक के लिए खून भी देते हैं, और सैलाब में फंसे बिहारी को भी निकालते हैं. अमरनाथ यात्री को तब तक अपने घर में रोके रखते हैं जब तक चौक में पुलिस पर हो रहा पथराव थम ना जाए. मुहल्ले में अकेले पड़े कश्मीरी परिवार के बूढ़े का शव अपने कांधे पर श्मशान तक भी ले जाते हैं और पंडित लड़के की शादी में डांस भी करते हैं.
हर शहर-गली-मुहल्ले में देश का जवान ऐसा ही होता है, कश्मीर का भी ऐसा ही है. ये आज के मोदी के भारत में शायद नहीं रहना चाहता है. लेकिन इंडिया के करीब रहना चाहता है.
ये वो मासूम ठगा हुआ जज्बाती तबका है जिसको कुछ सूझ नहीं रहा कि आखिर उसका भविष्य क्या है? ये सबको गाली देता है. शेख अब्दुल्ला को भी. गिलानी को भी. मुफ्ती को भी. मोदी को भी. पाकिस्तान के साथ जाते हुए खौफ खाता है. आज वाले इंडिया के साथ रिलेट नहीं कर पा रहा. आजादी और अंदरूनी खुद-मुख्तारी की रूप-रेखा से कतई नावाकिफ है. इसे कुछ भी समझ नहीं आ रहा. आज जबकि सारी दुनिया 2030/2040 के प्लान बना रही है, इसको यही इल्म नहीं है कि 2021 में कश्मीर की जमीनी सूरते-हाल क्या होगी?
वो इसी इंडिया में होगा?...शिट!
वो पाकिस्तान में होगा...ओह!
वो आजाद होगा... हाहाहा!
ये एक बड़ी उलझी हुई जहनी कैफियत है. पूरी नस्ल बीमार हो चुकी है. ये टिक-टिक करता हुआ एटम बम है जिसके तीन चार दावेदार निकल आये हैं. पाकिस्तान था ही, अब चाइना भी है. इसको वक्त रहते डिफ्यूज कीजिए. अबकी इसके हौसले पस्त नहीं हैं. ये लोग इंडिया से नफरत करते-करते बुहत दूर निकल आये हैं. ये सब एटॉमिक प्लांट हैं. इनकी सुनिए. इनको एड्रेस कीजिए. इज्जत और सम्मान दीजिए. ये लाड़-प्यार को तरस चुके बच्चे की तरह है. आप शायद जंग से जमीन का टुकड़ा जीत लेंगे पर इनके दिल नहीं जीत सकते. याद रखिए, जिसके पास खोने को कुछ नहीं होता वही दुनिया का सबसे घातक हथियार होता है.
मोदी जी, आप सोचते होंगे कि मैं ये खत आप ही को क्यों लिख रहा हूं. नवाज, गिलानी या महबूबा मुफ्ती को क्यों नहीं. इसलिए कि सारे इंडिया की तरह कश्मीर की नई नस्ल भी ये बात अच्छे से जानती है कि मोदी के होते कुछ भी मुमकिन है. इनको इस बात का अहसास है कि सालों बाद एक ऐसा शख्स सामने आया है जो मुश्किल फैसले लेने की हिम्मत दिखा रहा है. एक ऐसा शख्स जो बगैर हो-हल्ला किए जंगी नफरत के माहौल में भी चाय पीने के बहाने नवाज शरीफ के घर में लैंड कर जाता है.
मोदी जी, आप सैलाब के बाद लगातार महीने के महीने कश्मीर आये. आपने अपने तीज-त्यौहार यहां मनाए, सैलाब के वक्त अपनी सारी आर्मी वैली में झोंक दी. ये सब कुछ इतिहास के पन्नों में मौजूद है. इतिहास में सब महफूज रहता है. अच्छा भी, बुरा भी. आपके साथ गोधरा भी चलेगा, लाहौर भी.
लेकिन मोदी जी, इस सबके बावजूद हैरत है कि आज जब करीब चार महीने से कश्मीर बंद पड़ा है, आपने एक बार भी इन लोगों को विजिट करने की नहीं सोची. क्या आप तभी आएंगे जब आपको वोट चाहिए होंगे? फिर आपमें और फारूक अब्दुल्ला में क्या फर्क रहा?
आप का मुहब्बत भरा 140 अक्षर का एक खूबसूरत ट्वीट, सारा माहौल बदल कर रख सकता था. लेकिन आपकी उंगलियां थर-थर कांप जाती हैं.
अगर आप हमेशा यूपी, बिहार, बंगाल, पंजाब के चुनाव देखते रहेंगे तो ऐतिहासिक काम नहीं कर पाएंगे. आपने अकेले दम पर चुनाव जीता, लेकिन अब सबका सब नागपुर कर रहा है. आपकी एक स्पीच ने बलवावादी साधू-संतों-योगियों को सीन से बाहर कर दिया. गोरक्षा, घर-वापसी, लव-जिहाद सब ठिकाने लग गया आपकी एक लताड़ से. लेकिन कश्मीर पर आप खामोश क्यों हैं?
जब कौमों में आक्रोश होता है, अपनों में नाराज़गी होती है, उसे मोटे बजट और रोजगार से दूर नहीं किया जाता. प्यार और मोहब्बत का नेक नीयती भरा हाथ बढ़ाना होता है. कश्मीरी बड़ा गैरती है. वो हर रोज हजार बारह सौ की रसोई पकाता है. साल भर मार्केट बंद रखने का साहस करता है. अपने फल अपनी फसलों को साल के साल जाया जाने देता है लेकिन अपने काज का सौदा नहीं करता.
मोदी जी, आप जानते हैं बुरहान की मौत और इन सौ से ज्यादा मरने वाले लड़कों की मौत के बाद क्या हुआ?
इंडिया के साथ खड़े होने वाले मुसलमानों का एक बुहत बड़ा गैर-कश्मीरी तबका कश्मीरी के साथ चला गया. पूरे पीर पंजाल के डिस्ट्रिक्ट, चिनाब वल्ली के मुस्लिम डिस्ट्रिक्ट, जम्मू और लद्दाख के मुस्लिम बहुल डिस्ट्रिक्ट ब्लाक और तहसीलें आज कश्मीर की टोन में बात करती हैं. आखिर इंडिया का ये नुकसान क्यों हुआ? किन्होंने करवाया? जमीनी सूरत यह है कि अबकी बार, इंडिया ने वो नेशनलिस्ट मुस्लिम फोर्सेस (गुज्जर/पहाड़ी/डोगरी/कश्मीरी) भी गंवा दीं जो अभी दो साल पहले तक इंडिया के साथ हुआ करती थीं. यही वो लोग थे जिन्होंने आपकी लहर के वक्त बीजेपी को 25 सीटें जितवा के कश्मीर की हुक्मरानी का ताज दिया था. वही कारगिल, जो पाकिस्तान के साथ युद्ध के वक्त इंडियन आर्मी के साथ खड़ा था, आज कश्मीरी नौजवानों की मौत पर प्रोटेस्ट रैलियां मना रहा है. मोदी जी, आपने तेजी के साथ ग्राउंड खोया है. इंडिया के लिए ये सब अलार्मिंग है.
मोदी जी, आखिरी बात. आप सोचिए तो सही कि बीजेपी और आरएसएस से नफरत करने वाला मुसलमान आखिर अटल बिहारी वाजपेयी जी से नफरत क्यों नहीं कर पाया? कुछ तो था अटल में ऐसा जो आप में नहीं है. क्या है वो? आप अच्छे से जानते हैं. उसकी दोबारा खोज कीजिए. अपने लिए, अपने महान देश भारत के लिए. आप हिस्ट्री के बहुत खूबसूरत मोड़ पर आ खड़े हुए हैं.
आप कश्मीर को सच्चे मन से एड्रेस कीजिए. आम कश्मीरी के पास इंडिया अभी भी एक सुरक्षित विकल्प है. लेकिन वो ये वाला इंडिया नहीं है. जहां मुसलमान बात करते हुए भी खौफ खाने लगा है. जहां मुस्लिम को कदम-कदम पर एक हिंदू से प्रमाणपत्र लेना पड़े.
भारत एक देश मात्र नहीं है. जमीन का टुकड़ा नहीं है. एक हजारों साल में फैली प्यार-मुहब्बत की सभ्यता है. इसके ऐतिहासिक डिस्कोर्स को आपके हिस्से में आये ये छह-आठ वर्ष नहीं बदल सकते.
मोदी जी, मौत का यह नंगा नाच बंद करवाइए. आप कर सकते हैं. आप दंगों के जानकार हैं. आप नफरत की इस मानसिकता को समझते हैं. लगाम कसिए इन सब पर. अगर इस वक्त चूक गए तो आपका इंडिया सालों के लिए पटरी से उतर जाएगा.
जनाब, मन की बात में घंटों बोलने का क्या फ़ायदा, जब उन्ही मुद्दों पे बात ना की जाए जो आम-अवाम को राहत पहुंचा सकें. गुजरे सैलाबी दिनों में कश्मीर के दर्जनों लड़कों ने सैकड़ों लोगों को डूबने से बचाया. कुछ लड़के बहकर मर भी गए. क्या आपने कभी उन को नेशनल मीडिया में जगह दी? किसी राष्ट्रीय वीरता सम्मान से नवाजा? आप क्यों ऐसे मौके गंवा देते हैं? कैसे आम कश्मीरी आपसे रिलेट करेगा और क्यों करेगा? इंसानियत, कश्मीरियत, जम्हूरियत जैसे तमाम स्लोगन बेमानी हैं. विकास और विश्वास चुनावी नारे हैं. जुमलेबाजी तज दीजिए. आपके पास समय कम है. प्लीज हौसला कीजिए. पाकिस्तान के हाथ लगे इस सबसे बड़े पत्ते को नकारा कर सकते हैं आप. कश्मीरी को मान-सम्मान-प्यार से एड्रेस कीजिए. मुस्लिम की खोयी शिनाख्त को वापस लौटाने में अपना योगदान दीजिए. इंडिया का बाईस करोड़ मुस्लिम आपका आभारी होगा.
एक बार फिर खुशियों और रोशनियों का त्यौहार दिवाली मुबारक!
आपका आभारी
एक आम कश्मीरी
डॉ. लियाकत जाफरी
उर्दू शायर एवं सांस्कृतिक कार्यकर्ता, पुंछ, जम्मू