धोनी का इशारा इसी मैच में खेली गई विराट कोहली की नाबाद 154 रन की पारी की तरफ था. इसी पारी ने भारत को जीत दिलाई थी. विराट कोहली जब विकेट पर आए थे तो टीम सिर्फ 13 रन पर एक विकेट गंवा चुकी थी और उसके सामने 286 रनों का विशाल लक्ष्य था. 134 गेंदों में 16 चौकों और एक छक्के से सजी अपनी पारी के साथ कोहली टीम को जीत दिलाकर ही पवेलियन लौटे.




यदि क्रिकेट में कोई अतिमानवीय क्षमता का या कहें कि सुपरमैन जैसा प्रदर्शन होता है तो पिछले कुछ समय के दौरान दौरान विराट कोहली कुछ-कुछ इसी तर्ज पर खेले हैं. उन्होंने एक के बाद एक रिकॉर्ड बनाए हैं. मोहाली में विराट कोहली ने अपने वनडे करियर का 26वां शतक बनाया. उनकी रफ्तार कितनी शानदार है, इसका अंदाजा दूसरे खिलाड़ियों के साथ उनकी तुलना करके लगाया जा सकता है. कोहली महज 174वें वनडे में 26वें शतक तक पहुंच गए हैं. एक दिवसीय क्रिकेट में सबसे ज्यादा शतक सचिन तेंदुलकर के नाम हैं जिन्होंने 49 शतकों के लिए 463 मैच खेले. 30 शतक बनाने वाले रिकी पॉन्टिंग ने 375 वनडे खेले हैं तो सनथ जयसूर्या ने 404 मैचों में 28 शतक जमाए. यानी जल्द ही कोहली दूसरे नंबर पर आ सकते हैं और 350वें मैच पहुंचते-पहुंचते तेंदुलकर को भी पीछे छोड़ सकते हैं.
यदि क्रिकेट में कोई अतिमानवीय क्षमता का प्रदर्शन होता है तो पिछले कुछ समय के दौरान विराट कोहली कुछ-कुछ इसी तर्ज पर खेले हैं. उन्होंने एक के बाद एक रिकॉर्ड बनाए हैं
क्रिकेट का इतिहास डॉन ब्रेडमैन से लेकर सचिन तेंदुलकर तक कई महान खिलाड़ियों के खेल का साक्षी रहा है. लेकिन कोहली अपनी निरंतरता और असफल न होने की क्षमता के कारण इन सबसे अलग दिख रहे हैं. कोहली के 26 में से 16 शतक तब आए जब टीम किसी विशाल स्कोर का पीछा कर रही थी और इनमें से 14 मौकों पर उसे जीत मिली.
अतीत के सारे महान खिलाड़ी कभी-कभी न असफलता के दौर से गुजरे हैं और उन्हें महान इस बात ने बनाया कि वे इस सीमित असफलता से उबरकर फिर करिश्माई प्रदर्शन कर पाए. पर कोहली को देखकर लगता ही नहीं कि वे फेल होना जानते हैं और उन्हें कोई असफल कर सकता है.




क्रिकेट को पल-क्षण में उलटफेर वाला खेल समझा जाता है. चीजें खिलाड़ी की गलती के बिना भी कब उसके खिलाफ हो जाएं, कहा नहीं जा सकता. कोई बैट्समैन एक परफैक्ट शॉट लगा सकता है लेकिन तुरंत ही पता चलता है कि वह बॉल सीधे फील्डर के हाथ में थमा बैठा. पिच का भी अलग खेल होता है. वह किसी भी सामान्य बॉल को कब खतरनाक बॉल में बदल दे कह नहीं सकते. सब ठीक रहने पर अंपायर का एक गलत फैसला बैट्समैन को पैवेलियन भेज सकता है.




लेकिन विराट कोहली के साथ ऐसा कुछ भी नहीं हो रहा है. और इसलिए नहीं कि वे किस्मत वाले हैं, विराट इस वक्त अपने खेल को उस स्तर पर ले जा चुके हैं जहां उनका प्रदर्शन इन अनहोनियों से अछूता हो गया है.
क्रीज पर थमने के लिए समय देकर जमना होता है
क्रिकेट विशेषज्ञ मानते हैं कि किसी भी बैट्समैन के लिए क्रीज पर ज्यादा देर थमने के लिए जरूरी होता है कि वह स्थिर होकर पहले खुद को जमाने की कोशिश करे. खेल की सामान्य समझ कहती है कि हर एक बैट्समैन को अपने सुर-ताल में पारी शुरू करने से पहले, क्रीज पर कुछ समय रुककर, आराम से बिताना चाहिए. इस दौरान उसे मैच के हालात दिमाग में बिठाने चाहिए, मैदान और पिच की प्रकृति भांपने की कोशिश करनी चाहिए और यह भी समझना चाहिए कि बॉलर की रणनीति क्या है. फिर इसके हिसाब से बैटिंग करनी चाहिए.
विराट कोहली में यह बुद्धिमत्ता कूट-कूटकर भरी है. वे इसका इस्तेमाल भी करते हैं लेकिन उनका तरीका बाकी बैट्समैन से अलग है. दूसरे बैट्समैन अमूमन शुरुआत में हल्के-फुल्के शॉट लगाकर बस यह कोशिश करते हैं कि बॉल उनके बल्ले पर आती रहे. वहीं दूसरी तरफ कोहली हालात को भांपते तो हैं लेकिन, यह सुनिश्चित करते हैं कि उनके जमने से पहले बॉलर अपनी रिदम या ताल हासिल न कर पाए. अकसर कोहली शुरुआत में बड़े शॉट नहीं खेलते लेकिन, उनकी पूरी कोशिश रहती है कि वे तेजी से एक-एक, दो-दो रन बनाएं. वे अपने जमने की प्रक्रिया में रन बनने की गति रुकने नहीं देते.




शुरुआती कुछ बॉल खेल लेने के बाद कोहली अपनी बैटिंग में थोड़ी आक्रामकता मिलाने लगते हैं. तब तक उनका स्ट्राइक रेट 100 या इसके आसपास चल रहा होता है. अब कुछ बड़े शॉट्स खेले जाते हैं. आजकल के क्रिकेट में भरपूर ताकत के साथ बड़े शॉट्स लगाने का चलन है. लेकिन कोहली ऐसा नहीं करते. उनमें यह क्षमता है भी नहीं. 2016 के एशिया कप के बाद एक इंटरव्यू में उन्होंने इस बात को माना था कि उनमें बड़े शॉट्स खेलने की वैसी ताकत नहीं है. इसके बदले वे अपने शॉट्स की टाइमिंग सही रखते हैं और बॉल को सटीक जगह प्लेस करते हैं.
प्लेसमेंट टाइमिंग से कम महत्वपूर्ण नहीं है
क्रिकेट में कुछ वजहों से शॉट की टाइमिंग को बॉल की प्लेसमेंट से ज्यादा तवज्जो दी जाती है. हालांकि प्लेसमेंट टाइमिंग जितनी ही महत्वपू्र्ण होती है. यदि आपने परफेक्ट टाइमिंग के साथ एक कवर ड्राइव लगाया और वो सीधे फील्डर के हाथ में चला गया तो उसका कोई मतलब नहीं है. कोहली की खास बात है कि वे बैटिंग करते हुए अपने शॉट्स के लिए गैप खोज लेते हैं और कई बार अपनी इच्छा से गैप बना लेते हैं. बैकवर्ड प्वाइंट पर उनके चौके इसका सबसे बड़ा उदाहरण हैं : ऑउटसाइड ऑफ स्टंप पर पड़ने वाली यॉर्कर बॉल्स को कोहली अपनी कलाइयों के सहारे खेलते हैं और उन्हें कवर की जगह पॉइंट बाउंड्री की दिशा में खेलते हैं. आखिरी ओवर में विपक्षी टीम के कप्तान ज्यादातर मौकों पर कवर बाउंड्री की तरफ फील्डर तैनात करते हैं और अकसर कोहली के शॉट इन फील्डर्स को मात देते हैं.




कोहली के ये सारे शॉट्स उम्दा बॉल्स पर लगाए जाते हैं. कोहली जैसी क्षमताओं वाले भले ही न हों लेकिन बॉलर भी इंसान ही हैं और वे गल्तियां भी करते हैं. कोहली इसका पूरा फायदा उठाते हैं. यदि कोई शॉर्टपिच बॉल है तो उसपर छक्का लगने की पूरी संभावना होती है. यदि बॉल कोहली के पैरों के पास पटकी गई है तो वह बड़ी खूबसूरती दो फील्डरों के बीच से निकलेगी. इस 27 वर्षीय खिलाड़ी की बैटिंग में बॉल को हल्के से छू देने वाले शॉट या पैडल स्कूप नहीं हैं, शायद इसलिए कि उसे इनकी जरूरत नहीं है और उनके परंपरागत शॉट सारी जरूरतें पूरी कर देते हैं.
कोहली जिस तरह से खेल रहे हैं अभी वे और बेहतर ही होंगे. क्रिकेट में अकसर होता है कि अपने करियर की शुरुआत बेहतरीन अंदाज में करने वाले बैट्समैन की कमजोरियां बॉलर पहचानने लगते हैं और इन स्टार बैट्समैन का करियर ढलान पर आने लगता है. इस मामले में कोहली लंबी रेस का घोड़ा लगते हैं. पिछले साल गर्मियों में ऑफ स्टंप के बाहर घूमती हुई बॉल को खेलने में वे संघर्ष करते दिख रहे थे. लेकिन उन्होंने इस पर मेहनत की और अब इसे अपनी ताकत बना लिया है. वे न तो बाऊंसर खेलने में असहज हैं न स्पिन. और यदि ऐसा ही चलता रहा तो विपक्षी बॉलरों के लिए कोहली चिंता की बड़ी वजह बने रहेंगे