भारत से टेस्ट श्रृंखला खेलने राजकोट पहुंची इंग्लैंड की टीम अगर इस वक्त हताश और निराश लोगों का समूह दिख रही है तो क्या इसके लिए वास्तव में उसे ही दोष दिया जाना चाहिए?
यह टीम अब दुनिया की नंबर-एक टेस्ट टीम (भारत) से मुकाबले के लिए उतरने वाली है. वह भी मेजबान की अपनी जमीन पर. यही नहीं, इसने अभी हाल में ही एक ऐसी टीम (बांग्लादेश) से पराजय का स्वाद चखा है, जिससे वह इससे पहले कभी नहीं हारी. तिस पर उसे भारत दौरे का अपना खर्च खुद उठाने के लिए कह दिया गया है. उसके गेंदबाज स्टुअर्ट ब्रॉड ने खुद माना है कि वे लोग अपने आप को काफी दबाव में महसूस कर रहे हैं. यहां तक कि उसके एक पूर्व कप्तान ने भविष्यवाणी कर दी है कि यह टीम भारत से 0-5 से श्रृंखला हारने वाली है. यानी पूरी तरह उसका सूपड़ा साफ होने वाला है. एक पूर्व भारतीय कप्तान ने भी इस बयान से सहमति जताते हुए कहा है कि इंग्लैंड का ‘चिंतित होना लाजमी है.’




तो क्या इन हालात में ही एलेस्टर कुक (इंग्लैंड के कप्तान) कोई जादुई कारनामा कर सकते हैं? ठीक वैसे ही जैसे उन्होंने 2012 में किया था? इसका जवाब है, ‘बिल्कुल कर सकते हैं.’ आइए जानते हैं, वे पांच क्षेत्र, जहां भारत के लिए इंग्लैंड की टीम चुनौती बन सकती है. भारत को निश्चित रूप से यहां विपक्षी टीम से सावधान रहना होगा.
उनके निचले क्रम को ‘पुछल्ला’ समझना गलती होगी




इंग्लैंड के निचले क्रम के बल्लेबाजों को ‘पुछल्ला’ समझना भारत के लिए बड़ी भूल साबित हो सकता है. उनके करीब-करीब सभी गेंदबाज अच्छी बल्लेबाजी कर लेते है और तकनीकी रूप से भी मजबूत हैं. और यहां मोइन अली की तो गिनती ही नहीं की जा रही है. ज़फर अंसारी, आदिल राशिद और क्रिस वॉक्स जैसे गेंदबाज प्रथम श्रेणी मैचों में शतक जमा चुके हैं. यानी उनकी बल्लेबाजी टीम के आखिरी खिलाड़ी तक है.
ऐसे में अब जबकि ज्यादातर मैच अपेक्षाकृत कम स्कोर वाले होने लगे हैं, इंग्लैंड के निचले क्रम के बल्लेबाज जितने भी रन बनाएंगे, सब के सब मैच में निर्णायक भूमिका अदा कर सकते हैं. बांग्लादेश के खिलाफ पहले टेस्ट मैच में इंग्लैंड की 22 रनों की जीत से यह बात साबित हो चुकी है. यानी 90 रन पर उनके पांच विकेट गिर जाने की स्थिति में भी भारतीय टीम को किसी खुशफहमी या तसल्ली में आने की इजाजत नहीं मिल सकती. क्योंकि उनके निचले बल्लेबाजी क्रम में इतनी क्षमता है कि वह टीम को इस स्थिति से निकालकर स्कोर 300 के पार ले जा सकता है. और ऐसी किसी स्थिति में भारत के लिए मैच फंस सकता है.




उनके फिरकी गेंदबाजों को कमतर समझना
निश्चित रूप से इंग्लैंड के फिरकी गेंदबाजों का प्रदर्शन उस तरह का नहीं है, जैसा कि भारत के रविचन्द्रन अश्विन, रवीन्द्र जड़ेजा और यहां तक कि अमित मिश्रा कर रहे हैं. इसके बावजूद भारतीय बल्लेबाज उन पर हावी होकर उनकी हर गेंद को मारने की नहीं सोच सकते.
अभी 2014 की बात है. उस दौरान इंग्लैंड में हुई टेस्ट श्रृंखला के तीसरे मैच में मोइन अली ने 67 रन पर छह विकेट लेकर भारतीय टीम को महज 178 रनों पर ठिकाने लगा दिया था. अली समझदार गेंदबाज हैं. उन्हें अपनी सीमाएं अच्छी तरह पता हैं. वे उसी दायरे में गेंदबाजी करते हैं, जितनी कि उन्हें पिच से मदद मिल रही होती है. भारत को इस ऑफ स्पिनर पर सतर्क निगाह रखनी होगी. साथ ही उस फिरकी गेंदबाज पर भी जो उनकी मदद के लिए टीम में शामिल किया जाएगा.




भारतीय खिलाड़ी शायद एक साल पहले मोहाली में दक्षिण अफ्रीका के साथ हुआ पहला टेस्ट मैच नहीं भूले होंगे. इसमें दक्षिण अफ्रीका की ओर से कभी-कभार गेंदबाजी करने वाले डीन एल्गर ने चार विकेट लेकर भारतीय टीम को महज 201 रन पर समेट दिया था.
कुक को अनदेखा नहीं किया जा सकता
एलेस्टर कुक काफी समझदार होते जा रहे हैं. उन्होंने इस साल अब तक जितने भी टेस्ट खेले हैं, उनमें एक ही शतक लगाया है. इस साल उनका औसत भी 45 के आसपास रहा है, लेकिन एक ऐसे खिलाड़ी को, जिसे ‘डैडी हंड्रेड्स’ (ऐसे शतक जिसमें स्कोर 150 से ऊपर हो) का पर्याय समझा जाने लगा है, उसको अनदेखा नहीं किया जा सकता.
एलेस्टर कुक भारत के खिलाफ अब तक बेहद खतरनाक साबित हुए हैं. टेस्ट में उनका अब तक का सबसे बड़ा स्कोर (294 रन) भारत के विरुद्ध ही बना है. यह उन्होंने 2011 में बर्मिंघम में हुए टेस्ट के दौरान बनाया था. वे 2006 में नागपुर में हुए मैच के दौरान भारतीय टीम को धूल चटा चुके हैं, जो कि उनका पदार्पण टेस्ट मैच ही था. पिछली बार जब 2012 में वे भारत आए थे तो मुंबई में हुए मैच के दौरान उनके शानदार 122 रनों ने केविन पीटरसन को यह गुंजाइश दी कि वे अपने कलात्मक खेल का बेहतरीन प्रदर्शन कर सकें. इस मैच में पीटरसन ने 186 रन बनाए थे और आश्चर्यजनक रूप से भारत को हार का सामना करना पड़ा था. इसके बाद कुक ने तीसरे टेस्ट में 190 रन बनाए और इस मैच में भी भारत को हराकर इंग्लैंड ने सीरीज पर कब्जा कर लिया था.




यानी विराट कोहली को सीधी-सरल सी बात याद रखनी है कि इस साल कुक ने अब तक कोई बड़ा स्कोर नहीं बनाया है और अब वे अपनी पसंदीदा टीम के खिलाफ खेल रहे हैं. अगर उन्हें एक या आधा मौका ही दिया गया तो यह भारत के लिए भारी पड़ सकता है.
डीआरएस के मामले में भावनाओं पर नियंत्रण रखना होगा
डीआरएस (अंपायर के फैसलों की समीक्षा की व्यवस्था) के मामले भारत का समय बहुत अच्छा नहीं रहा है. कुछ सवालिया फैसलों के मामले वे गलत साबित हुए, जिसकी वजह से उन्होंने आगे से डीआरएस का उपयोग करने से ही इनकार कर दिया. वे अब तक इसी फैसले पर कायम हैं.
लेकिन बीसीसीआई (भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड) के मन में बदलाव का मतलब है कि पांच मैचों की इस टेस्ट श्रृंखला में डीआरएस का ट्रायल किया जाएगा. हालांकि इसमें हॉटस्पॉट तकनीक का इस्तेमाल नहीं होगा. इसका मतलब भारतीय फिरकी गेंदबाजों के लिए अच्छी खबर भी है, जो इस व्यवस्था से फायदा उठाने की उम्मीद में होंगे. लेकिन इसका अर्थ यह भी है टीम को दिमाग ठंडा रखना होगा. घूमते विकेट पर फिरकी गेंदबाजी के दौरान करीब-करीब हर दूसरे ओवर में विकेट की अपील भी की जाती है क्योंकि गेंदबाज को यकीन होता है कि उसने बल्लेबाज को आउट कर दिया है. कप्तान विराट कोहली को सुनिश्चित करना होगा कि वे अश्विन और जडेजा के दबाव में न आएं. उसी वक्त डीआरएस की अपील करें, जब वे खुद भी पूरी तरह उसके लिए आश्वस्त हों. आखिरकार, समीक्षा के बाद आया फैसला ऐसा नहीं होता, जिसकी आगे चलकर फिर समीक्षा हो सके.




फंसे हुए मैच का निकालना सीखना होगा
न्यूजीलैंड से हुई श्रृंखला के दौरान भारत ने कई आसान विकेट गंवाए थे. हालांकि इसके बावजूद भारतीय गेंदबाजों ने सुनिश्चित किया कि इसका टीम को ज्यादा नुकसान न हो. उस सीरीज के सिर्फ आखिरी मैच में अजिंक्य रहाणे ने ही अपने प्रदर्शन से आश्वस्त किया कि वे मुश्किल परिस्थिति से बाहर आ सकते हैं. शॉर्ट पिच गेंदों का चतुराई से सामना करते हुए उन्होंने इस मैच में 188 रन बनाए और विराट कोहली के साथ 365 रनों की साझेदारी की.
इंग्लैंड के तेज गेंदबाज भी भारत के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकते हैं. स्टुअर्ट ब्रॉड अनुभव की खान हैं. पहले टेस्ट मैच के बाद जेम्स एंडरसन भी टीम से जुड़ सकते हैं. बेन स्टोक्स अपनी रिवर्स स्विंग और बाउंसर के दम पर टीम की ताकत बन चुके हैं. यानी भारत के लिए इंग्लैंड के तेज गेंदबाजों को खेलना भी बहुत आसान नहीं होगा. उन्हें मारने की कोशिश में अपना नुकसान कर लेने से बेहतर होगा कि वे टिककर उनका सामना करें.