ओलम्पिक में भारत के पदकों की स्थिति कितनी खराब है, इसका अंदाजा महज इस आंकड़े से लगाया जा सकता है. अब तक भारत ने कुल 24 ओलम्पिक खेलों में हिस्सा लिया और सिर्फ 28 पदक जीते. क्या 125 करोड़ की आबादी का आंकड़ा पार कर चुके देश के लिए यह संतोषजनक माना जा सकता है? कतई नहीं. यही नहीं, रियो-2016 से पहले तक देश के लिए लगातार दो ओलम्पिक खेलों में पदक दिलाने वाले खेल भी महज चार ही हैं - हॉकी, कुश्ती, मुक्केबाजी और निशानेबाजी. इस सूची में रियो से एक और नाम जुड़ा बैडमिंटन. इसमें साइना नेहवाल ने 2012 के लंदन ओलम्पिक में कांस्य पदक जीता था. जबकि पीवी सिंधु रियो में रजत पदक के साथ एक पायदान ऊपर चढ़ गईं. यही नहीं, चीन के खिलाड़ियों के दबदबे वाले से इस खेल में सिंधु ने रियो की स्वर्ण पदक विजेता स्पेन की कैरोलिना मार्टिन के साथ मिलकर चीनियों का दबदबा भी तोड़ा.




पिछले कई साल से भारत के प्रतिभावान बैडमिंटन खिलाड़ी विश्वस्तर पर छा जाने के लिए बेताब थे, छटपटा रहे थे. जैसे कि वे अपनी बारी का इंतजार ही कर रहे थे. ओलम्पिक में भारत ने इस बार 1992 के बाद से पहली बार इस खेल में सबसे बड़ा सात सदस्यों वाला दल भेजा था. यहां 1992 का खास जिक्र इसलिए कि पहली बार उसी साल बैडमिंटन को ओलम्पिक प्रतिस्पर्धाओं में शामिल किया गया था.
चीन के खिलाड़ियों के दबदबे वाले से इस खेल में सिंधु ने रियो की स्वर्ण पदक विजेता स्पेन की कैरोलिना मार्टिन के साथ मिलकर चीनियों का दबदबा भी तोड़ा है
खेल में निरंतरता
रियो ओलम्पिक में भारतीय बैडमिंटन खिलाड़ियों ने लंदन की कहानी ही दोहराई. बल्कि थोड़ा कुछ बेहतर ही किया. जैसे कि लंदन ओलम्पिक में साइना नेहवाल ने महिला एकल का कांस्य पदक जीता था. साथ ही, पारुपल्ली कश्यप पहले भारतीय खिलाड़ी भी बने, जो पुरुष एकल वर्ग के क्वार्टर फाइनल तक पहुंचे थे. हालांकि वे मलेशिया के ली चोंग वेई से हार गए, जिन्होंने बाद में रजत पदक भी जीता. इसी तरह रियो में पीवी सिंधु ने अपने से ऊंची वरीयता वाली तीन खिलाड़ियों को हराते हुए रजत पदक हासिल किया. जबकि 23 साल के श्रीकांत किदाम्बी क्वार्टर फाइनल में इतिहास बनाने और बड़ा उलटफेर करने से महज तीन प्वाइंट से चूक गए. इस मैच में उनके सामने दुनिया के तीसरे नंबर के खिलाड़ी चीन के लिन डैन थे, जिन्हें मैच निकालने में एड़ी-चोटी से पसीना आ गया. हालांकि किदाम्बी क्वार्टर फाइनल से पहले के दौर में दुनिया के पांचवें नंबर के खिलाड़ी डेनमार्क के जैन ओ जॉर्गेनसन को हरा चुके थे. और ओलम्पिक से पहले 2014 में पांच बार के विश्व चैम्पियन और दो बार के ओलम्पिक चैम्पियन लिन डैन को भी हरा चुके थे. डैन को हराकर उन्होंने चाइना ओपन सुपर सीरीज का खिताब जीता था. इस तरह सिंधु और किदाम्बी ने साबित कर दिया कि ये दोनों साइना के साथ मिलकर 2020 के टोक्यो ओलम्पिक में भारतीय चुनौती बनेंगे.




प्रतिभाओं की कमी नहीं
लेकिन ये तीन खिलाड़ी ही बैडमिंटन में चुनौती बनकर विश्वपटल पर उभरे हैं, ऐसा भी नहीं है. वर्तमान में पांच पुरुष खिलाड़ी ऐसे हैं, जो विश्व वरीयता क्रम में शीर्ष 50 में जगह बनाए हुए है. ये हैं - किदाम्बी (11वें), अजय जयराम (22वें), एचएस प्रणॉय (28वें), बी साई प्रणीथ (36वें) और समीर वर्मा (38वें). इससे पहले 2015 में शीर्ष-50 में छह पुरुष खिलाड़ी काबिज थे. यही नहीं, 2004 के एथेन्स ओलम्पिक में अभिन्न श्याम गुप्ता और निखिल कानितकर के बाद रियो में पहली बार बैडमिंटन की एकल प्रतिस्पर्धा में दो खिलाड़ी (साइना और सिंधु) मजबूत चुनौती बने थे.
प्रणीथ ने तो इसी साल ऑल इंग्लैंड चैम्पियनशिप में दुनिया के नंबर एक मलेशियन खिलाड़ी ली चोंग वेई को हराकर सनसनी फैला दी थी. इसी तरह, प्रणॉय भी ज्यादा पीछे नहीं हैं. वे तो इस साल हुए दक्षिण एशियाई खेलों में किदाम्बी के लिए ही चुनौती बन गए थे, जब फाइनल मुकाबले का पहला सैट उन्होंने 21-11 से जीत लिया था. हालांकि किदाम्बी ने वापसी करते हुए अगले दो सैट लगातार जीते और इन खेलों का स्वर्ण पदक अपने नाम किया. वैसे, प्रणॉय इससे पहले 2014 में इंडोनेशियन मास्टर्स ग्रांड प्रिक्स गोल्ड और 2016 में स्विस ओपन ग्रांड प्रिक्स गोल्ड टूर्नामेंटों में खिताबी जीत हासिल कर चुके हैं. लिन डैन और इंडोनेशिया के तौफीक हिदायत (अब रिटायर्ड) जैसे खिलाड़ियों को भी प्रणॉय अपने अब तक के करियर में एक-एक बार पराजित कर चुके हैं. अजय जयराम 2014 और 2015 में लगातार दो बार डच ओपन (ग्रांड प्रिक्स) का खिताब जीत चुके हैं. उन्होंने 2015 में ही कोरिया ओपन सुपर सीरीज में भी फाइनल तक का सफर तय किया था.




 वर्तमान में पांच पुरुष खिलाड़ी ऐसे हैं, जो विश्व वरीयता क्रम में शीर्ष 50 में जगह बनाए हुए है. ये हैं - किदाम्बी (11वें), अजय जयराम (22वें), एचएस प्रणॉय (28वें), बी साई प्रणीथ (36वें) और समीर वर्मा (38वें)
समीर वर्मा की उम्र (38) ज्यादा हो चुकी है. वे 2012-13 में चोटों से काफी परेशान रहे. लेकिन 2014 में उन्होंने ऑल इंडिया सीनियर रैंकिंग बैडमिंटन चैम्पियनशिप जीतकर वापसी की. और वर्तमान में दुनिया के शीर्ष-50 खिलाड़ियों में भी बने हुए हैं, जो उनकी संघर्ष क्षमता साबित करता है. लंदन ओलम्पिक में शानदार प्रदर्शन करने वाले कश्यप भी दुनिया के शीर्ष 100 खिलाड़ियों में जगह बनाए हुए हैं. उनके सहित कुल नौ खिलाड़ी शीर्ष-100 में शामिल हैं. इसी तरह महिलाओं की विश्व वरीयता सूची में दो खिलाड़ी (सिंधु-10वें तथा साइना-5वें पायदान पर) शीर्ष-10 और तीन खिलाड़ी (सैली राणे - 94, जी ऋत्विका शिवानी 84, तनवी लाड 79) शीर्ष 100 में शुमार हैं.
यानी पुरुष वर्ग हो या महिला, प्रतिभाओं की कमी नहीं है. देश में 2015 से शुरू हुई प्रीमियर बैडमिंटन लीग से भी उभरते युवा खिलाड़ियों को ली चोंग वेई जैसे विश्वस्तरीय श्रेष्ठ खिलाड़ियों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खेलने का मौका मिला है. इससे भी उनके प्रदर्शन, अनुभव और कौशल में उल्लेखनीय रूप से सुधार हुआ और आगे भी पूरी संभावना है. क्योंकि हर साल होने वाली इस लीग में, उन्हें देश के ही नहीं विदेशी प्रतिद्वंद्वियों से भी दो-दो हाथ करने का मौका मिल रहा है.




खेल निखारने के केंद्र भारत में पहले से मौजूद हैं
भारतीय खिलाड़ियों के लिए देश में ही विश्वस्तरीय प्रशिक्षण केंद्रों उपलब्ध होना एक और अच्छी बात है. ऐसा ही एक केंद्र है, पुलेला गोपीचंद बैडमिंटन अकादमी (पीजीबीए). यह अकादमी भारत के पूर्व ओलम्पियन और ऑल इंग्लैंड चैम्पियन गोपीचंद ने 2008 में हैदराबाद में शुरू की. इसके बाद मध्य प्रदेश सरकार के सहयोग से ग्वालियर, गुजरात सरकार की मदद से वडोदरा और तमिलनाडु सरकार के साथ सलेम में वे अकादमी की शाखाएं शुरू कर चुके हैं. जबकि ग्रेटर नोएडा में जल्द शुरू करने वाले हैं. हैदराबाद के मुख्य केंद्र में तो विश्वस्तरीय सुविधाएं, प्रशिक्षक, पौष्टिक आहार विशेषज्ञ, फिजियो आदि उपलब्ध हैं. साथ ही, ये इंतजाम और विशेषज्ञों/प्रशिक्षकों की तादाद लगातार बढ़ाई भी जा रही है. मिसाल के तौर पर जब यह अकादमी शुरू हुई, तब इसमें महज आठ या नौ बैडमिंटन कोर्ट ही थे. लेकिन अब 17 हो चुके हैं. ऐसा ही अन्य मामलों में भी है.
स्थितियां भी भारत और भारतीय खिलाड़ियों के पक्ष में दिख रही हैं. विश्व बैडमिंटन से चीन का दबदबा लगातार घट रहा है. ऐसे में, भारत के सामने इस खेल में महाशक्ति के तौर पर उभरने का सुनहरा मौका है
यही वजह है कि यह अकादमी साइना और सिंधु जैसी दो ओलम्पिक मेडलिस्ट निकाल चुकी है. साथ ही, उन सभी प्रतिभाओं को भी उभारकर विश्व पटल पर स्थापित कर चुकी है, जिनका ऊपर जिक्र किया जा चुका है. हालांकि युगल प्रतिस्पर्धाओं के लिए सक्षम खिलाड़ियों के सामने आने में अभी कुछ मुश्किलें नजर आती हैं. इसके बावजूद मनु अत्री और सुमित रेड्डी इस दिशा में कुछ उम्मीद जगा रहे हैं और भविष्य की संभावनाओं के लिहाज से सक्षम भी नजर आते हैं.
पीजीबीए का कामकाज अब तक सिर्फ गोपीचंद और उनकी पत्नी पूर्व ओलम्पियन पीवीवी लक्ष्मी ही संभालते हैं. लेकिन अब जिस तरह उसका विस्तार हो रहा है और बैडमिंटन की तरफ रुझान बढ़ रहा है, उसे देखते हुए उन्हें हर स्तर पर ज्यादा सहयोग की जरूरत है. और इस सहयोग का मतलब माली इमदाद से भी लगाया जाना चाहिए. क्योंकि अब अकादमी से अपेक्षाएं भी बढ़ चुकी हैं. पीजीबीए और गोपीचंद से उम्मीद की जा रही है कि 2020 के टोक्यो ओलम्पिक खेलों से कम से एक स्वर्ण पदक विजेता बैडमिंटन खिलाड़ी तो देश के सामने ला ही सकेंगे.




स्थितियां भी भारत और भारतीय खिलाड़ियों के पक्ष में दिख रही हैं. विश्व बैडमिंटन से चीन का दबदबा लगातार घट रहा है. ऐसे में, भारत के सामने इस खेल में महाशक्ति के तौर पर उभरने का सुनहरा मौका है. हालांकि ये बात अलग है कि फिलहाल देश में क्रिकेट को ही धर्म की तरह पूजा जाता है. लेकिन इसके साथ यह भी देखना होगा कि दुनिया में क्रिकेट खेलने वाले देश महज दर्जन भर भी बमुश्किल ही होंगे. जबकि बैडमिंटन एक वैश्विक दर्जे वाला खेल है. इसलिए ये ज्यादा मायने नहीं रखता कि भारत ने क्रिकेट में कितनी बार विश्वकप जीता, बल्कि यह अधिक अहमियत रखता है कि बैडमिंटन जैसे खेल में देश कहां है और किस जगह हो सकता है.