पिछले दो महीनों के दौरान कश्मीर घाटी में 26 से ज़्यादा स्कूल जलाये जा चुके है. इनमें से कम से कम सात ऐसे हैं जो बिलकुल राख हो गए हैं. दो को छोड़ दें तो तकरीबन सारे सरकारी स्कूल हैं. हालात की गंभीरता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय ने बीते सोमवार को इस मुद्दे का संज्ञान लिया. उसने कहा कि जिम्मेदार अफसर शिक्षण संस्थानों की सुरक्षा के लिए प्रभावी तौर तरीकों पर विचार करें. अदालत के इस आदेश के अगले दिन ही पुलिस ने इस मामले में 12 लोगों की गिरफ्तारी का ऐलान कर दिया. लेकिन पुलिस के इस ऐलान से भी लोगों की जिज्ञासा और चिंता मिटती दिखाई नहीं दे रही.
पुलिस ने इस मामले की तह तक जाने और दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की बात कही है. दक्षिण कश्मीर के डिप्टी इंस्पेक्टर जनरल ऑफ़ पुलिस नीतीश कुमार बताते हैं, ‘अभी तक हम 21 लोगों को गिरफ्तार कर चुके हैं और लगभग उतने ही लोगों से पूछताछ जारी है.’




चार महीने से ठहरी हुई जिंदगी
कश्मीर घाटी पिछले लग भाग चार महीने से कर्फ्यू और बंद से जूझ रही है. इसकी शुरुआत हिजबुल मुजाहिदीन के कमांडर बुरहान वानी के आठ जुलाई को सुरक्षा बलों के हाथ मारे जाने के फ़ौरन बाद हुई थी. तब से अभी तक कश्मीर में लगातार लोग सड़कों पर आकर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. पिछले चार महीनों में सुरक्षा बलों के साथ हिंसक टकराव में 90 से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं और 15 हजार से अधिक घायल हुए हैं. पुलिस अब तक 15 हजार लोगों को गिरफ्तार कर चुकी है.
स्कूलों के जलने की शुरुआत भी इन्हीं विरोधी प्रदर्शनों के बीच हो गयी थी. पहला स्कूल दक्षिण कश्मीर के कुलगाम ज़िले में अगस्त के अंत में तब जला था जब सुरक्षा बलों और स्थानीय लोगों के बीच टकराव हो रहा था. जहां पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को स्कूल जलाने का ज़िम्मेदार ठहराया वहीं लोगों का कहना था कि स्कूल में आग पुलिस के दागे हुए आंसू गैस के गोले से लगी थी. अगले एक महीने के दौरान एक के बाद एक स्कूल जलता गया और आरोप लगते रहे. हालांकि राहत की बात यह थी कि आग के ये सारे मामले आकस्मिक दिखाई पड़ रहे थे.स्थिति ने चिंताजनक मोड़ तब ले लिया जब विरोध प्रदर्शन धुंधलाते दिखाई देने लगे लेकिन, आग के मामलों का सिलसिला और धधकता गया. अब जो स्कूलों में आग लग रही है वह निश्चित रूप से आकस्मिक नहीं है.
बयानबाजी




गिरफ्तारियों को छोड़ दें तो दुर्भाग्यवश राज्य सरकार की तरफ से आग की ये वारदात रोकने के कोई ठोस प्रयास नहीं दिखे हैं. लेकिन दो चीज़ें हैं जो बहुत जोर-शोर से हो रही हैं - कड़ी निंदा और आरोप. राज्य सरकार स्कूल जलाने का जिम्मेदार आतंकवादी नेताओं को ठहरा रही है. अलगाववादी नेता राज्य सरकार को और विरोधी नेता दोनों गुटों को.
जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट के अध्यक्ष, यासीन मलिक ने जेल से छूटने के कुछ घंटे बाद ही कहा कि स्कूलों के जलने के लिए राज्य की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती और शिक्षा मंत्री नईम अख्तर जिम्मेदार हैं. एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में उनका कहना था, ‘जब महबूबा जी के पिता, मुफ़्ती मुहम्मद सईद, 1986 में मंदिर जलवाकर सरकार से समर्थन वापिस ले सकते थे तो उनकी बेटी अपने फायदे के लिए स्कूल क्यों नहीं जलवा सकतीं.’
राज्य सरकार ने पलट वार किया. एक लिखित बयान जारी कर नईम अख्तर ने कहा, ‘इस मामले की तह तक जाना ज़रूरी नहीं है क्योंकि यह बिलकुल साफ है कि ये हरकतें किन लोगों की हैं.’ उनका आगे कहना था, ‘ये लोग कश्मीर में दहकती आग को जलाये रखना चाहते हैं. और ये वही लोग हैं जो बैंक लूटने, गाड़ियां जलाने और लोगों को परेशान करने को प्रोत्साहन देते आ रहे हैं.’




विरोधी नेता और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने दोनों गुटों को आड़े हाथ लिया है. सरकार को यह आगज़नी रोकनी में नाकामी पर और अलगाववादी संगठनों को चुप्पी साधे रहने के लिए.
कई सिविल सोसाइटी समूहों, ट्रेड यूनियनों और अन्य संस्थाओं ने भी सरकार की आलोचना की है और ढके छिपे शब्दों में ही सही, इस सब का ज़िम्मेदार राज्य सरकार को ही ठहराया है. स्कूलों को अपनी राष्ट्रीय संपत्ति कहते हुए कश्मीर इकनॉमिक अलायन्स के अध्यक्ष, हाजी यासीन खान का कहना है कि कश्मीर आग की इन वारदातों से दहल गया है, 'कुछ लोग हैं जो ऐसी हरकतों से हमारे जनांदोलन को अस्थिर करने की कोशिश करते हैं. ऐसे लोगों को बेनकाब करना होगा.'
राजनीति से परे




बयानबाज़ी, निंदा और आरोपों से परे हकीकत यह है कि इन स्कूलों में सिर्फ उन लोगों के बच्चे पढ़ते हैं जो प्राइवेट स्कूलों की फीस नहीं दे पाते. अब उनके पास फिलहाल पढ़ने के लिए कोई जगह नहीं है. दक्षिण कश्मीर के अनंतनाग ज़िले में तैनात एक सरकारी शिक्षक सत्याग्रह से बातचीत में कहते हैं, 'जो भी यह स्कूल जला रहा है कश्मीरी लोगों का दोस्त तो होगा नहीं.'
यह आगज़नी ऐसे वक्त पर हो रही है जब कश्मीर के छात्र नवंबर में होने वाली परीक्षाओं को टाल देने की मांग कर रहे थे. यह मांग करीब चार महीने से स्कूल बंद पड़े रहने के बाद ज़ोर पकड़ रही थी. लेकिन राज्य सरकार ने कड़ा रुख अपनाया और परीक्षाएं समय पर करवाने का फैसला किया है.




जाहिर है इससे लोग नाराज हैं. अनंतनाग के ये शिक्षक कहते हैं,'पैसे वाले लोगों के बच्चे ट्यूशन जैसी सुविधाएं पा सकते हैं लेकिन, इन सरकारी स्कूलों के गरीब बच्चे सिर्फ स्कूलों पर ही निर्भर रहते हैं. ये लोग बीच-बीच में स्कूल आकर अपने शिक्षकों की थोड़ी मदद ले लेते थे. अब जब स्कूल जल गया है तो ये बच्चे भी ऊपर वाले का नाम लेके ही परीक्षा में बैठेंगे. इन सब का भविष्य उज्जवल होने की बस आशा की जा सकती है.'
उधर, इन बच्चों के माता-पिता इनकी सुरक्षा को लेकर भी चिंतित हैं. कुलगाम ज़िले के ज़ाहिद अहमद कहते हैं, 'मेरा तो यह सोच सोच के बुरा हाल है कि खुदा न खास्ता परीक्षा के टाइम किसी ने स्कूल में आग लगा दी तो क्या होगा.' उनका बेटा दसवीं में पढ़ता है. अहमद कहते हैं कि राज्य सरकार की परीक्षा समय पर कराने की जिद कहीं उनके बच्चे को न ले डूबे.